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छोटे छोटे दुःख

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :255
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2906
आईएसबीएन :81-8143-280-0

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जिंदगी की पर्त-पर्त में बिछी हुई उन दुःखों की दास्तान ही बटोर लाई हैं-लेखिका तसलीमा नसरीन ....

बलात्कार की सजा उम्र-कैद


सन् उन्नीस सौ बयानवे की 23 सितंबर! अलस्सुबह टॉर्च जलाकर, कलकत्ता के फूलबागान में, गहरी नींद में सोई, किसी फुटपथिया औरत को पुलिस वैन में उठाकर, नीलकमल, सनातन और भोलानाथ उसे थाने के बैरक में ले गए। थाने की डेढ़ मंज़िली पुलिस बैरक में, उसके मुँह में कपड़ा ठूसकर, उन तीनों ने उस औरत का बलात्कार किया। इस दौरान अचानक उसके मुँह में हुँसा कपड़ा बाहर खिसक आया और उस औरत की चीत्कार गूंज उठी। उस कमरे की बगल में सोए तीन हवलदारों की नींद टूट गई। उस औरत को बचाने के बजाय वे तीनों भी उस पर टूट पड़े। इस हादसे के बाद वह औरत फिर फुटपाथ पर लौट आई और कुछेक फुटपथिया साथियों को लेकर वह थाने पहुंची और थाने के ओ सी के आगे फरियाद की। ओ सी ने पुलिस कमिश्नर को इत्तला दी। पुलिस कमिश्नर तहकीकात के लिए खुद थाने पहुंचे। उन्होंने उन पाँचों हलवदार और पुलिस ड्राइवर को नौकरी से बरखास्त किया और उन्हें गिरफ्तार कर लिया! उस थाने के ड्यूटी अफसर को भी सस्पेंड कर दिया गया। उसका रिजर्व फोर्स में तबादला भी कर दिया गया। इस बलात्कार की घटना को लेकर पश्चिम बंगाल राज्य पुलिस के खिलाफ व्यापक विक्षोभ भी शुरू हो गया। कलकत्ता शहर के राहगीर रास्ता-घाट पर पुलिस पर थूकते रहे। कई-कई जगहों पर ट्राफिक हवलदारों को मारा-पीटा भी गया। साल भर गुज़र जाने के बाद फैसला सुनाया गया-पुलिस हवलदार, नीलकमल को उम्रकैद!

कलकत्ता में बलात्कार के जुर्म में एक पुलिस को उम्रकैद की सज़ा सुनाई गई।

फैसला सुनाते हुए जज ने कहा, 'यह हादसा थाने के अंदर हुआ, जो आम जनता के लिए सबसे ज़्यादा सुरक्षित जगह समझी जाती है। यह दुर्घटना, अल्वर्तो मोरेविया के मशहूर उपन्यास 'टू वुमेन' की याद दिलाती है, जहाँ गिरजाघर के अंदर फौजियों ने एक किशोरी से बलात्कार किया था।'

नीलकमल रोता रहा, लेकिन उसकी रुलाई से किसी का भी मन नहीं पिघला। नीलकमल को उम्रकैद की सजा हो गई और इन दिनों वह प्रेसिडेंसी जेल में सज़ा काट रहा है। अच्छा, इस किस्म की घटना की क्या हमारे देश में कल्पना की जा सकती है? फुटपाथ की किसी औरत या लड़की का अगर कोई बलात्कार करे, तो किसी दिन उसे जेल की सलाखों के पीछे डाल दिया जाएगा?

अभी हाल ही में पटुआखाली से ढाका आते हुए, राह में लॉन्च पर ड्यूटी पर तैनात अंसारों ने एक लड़की के साथ बलात्कार किया। ख़बर पाकर, जिला एड्जुडेंट ने बलात्कारियों को सस्पेंड कर दिया। लेकिन अंत में, उन अंसारों का पक्ष लेते हुए, यह राय दी गई कि वह लड़की पतिता थी। मानों अगर पतिता थी, तो अंसारों को उसके साथ बलात्कार करने का हक है। चूंकि वह पतिता थी, इसलिए बलात्कारियों के सात खून माफ हो जाते हैं! यहाँ की कोई फुटपथिया औरत होती, तो उसका यही हाल होता। उसके बारे में यह कहा जाता कि फटपाथ पर पडी हई औरत का बलात्कार, कोई ऐसा अन्याय नहीं है। मैंने सारी स्थिति जान-समझ ली है। आजकल मर्यों के लिए बलात्कार करना, मानों दाल-भात है। जाने किसने तो कहा था- 'सारे के सारे मर्द मन ही मन हर किसी औरत का बलात्कार करते हैं।' मैं इस मंतव्य पर एतराज जताना चाहती हूँ, मगर यह मेरे वश में नहीं है।

मेडिकल कॉलेज के थर्ड ईयर में जूरिसप्रूडेंस के प्रोफेसर ने बलात्कार की एक परिभाषा सिखायी थी। हम सबको वह परिभाषा रट लेनी पड़ी थी-क. सोलह साल से कम उम्र लड़की से अनुमति लेकर या अनुमति लिए बिना ही, ख. पंद्रह साल से कम उम्र औरत से अनुमति लेकर, ग. पंद्रह साल से ज़्यादा की औरत की अनुमति के बिना ही, घ. सोलह साल से ज़्यादा की औरत की अनुमति के बिना ही और ङ. डरा-धमकाकर, कोई नशीली चीज़ खिलाकर, झूठ बोलकर, ज़ोर-ज़बर्दस्ती करके, छद्म वेश मंर किसी लड़की या औरत के साथ और च. किसी पागल या बुद्धू-बक्काल के साथ यौन संगम किया जाए, तो उसे बलात्कार कहते हैं। वैसे यौन-संगम किया ही जाए, ऐसी कोई वजह नहीं है। औरत का यौनांग, मर्द के यौनांग को अगर स्पर्श भी करे, तो भी उसे बलात्कार कहा जाता है।

यह संज्ञा कितने लोग जानते हैं? या जान भी जाएँ तो इसके मुताबिक क्या वे लोग विचार करते हैं? नहीं, ऐसा बिल्कुल नहीं होता। हादिस में लिखा हुआ है- 'कोई भी पति, जब भी अपनी बीवी को संभोग के इरादे से आमंत्रित करता है, तभी उसी पल बीवी को अपने पति के पास पहुँचना होगा, वर्ना फरिश्ते सारी रात उसे अभिशाप देंगे।' पति अगर मालिक है और पत्नी उसकी दासी. तो हादिस का निर्देश शिरोधार्य है वर्ना इंसान को जूरिसपूडेंस का आधुनिक कानून ही मानना चाहिए। पतिता या फुटपथिया औरत हो, तो वह क़ानून नहीं बदलना चाहिए। यह बात कहीं भी नहीं लिखी हुई है कि औरत अगर पतिता हो, तो बलात्कार की सज़ा कुछ कम हो जाती है। कलकत्ता में बलात्कार की सज़ा उम्र कैद तक खींच ले जाने में, राज्य सरकार मदद करती है। हमारे देश की सरकार ने कितने बलात्कार के मामलों में उम्रकैद की सज़ा सुनाई है? हाँ, मुझे यह बताने में कोई हिचकिचाहट नहीं है कि ऐसे किसी एक भी मामले में नहीं किया। इस देश में अगर बलात्कार होता है, तो अभी भी बलात्कार की शिकार औरत को ही कसरवार समझा जाता है। यह कहा जाता है कि उस औरत ने वलात्कार के लिए उकसाया था। उसकी नशीली-नशीली निगाहें, बेवजह हँसी-ठहाके, उग्र पोशाक वगैरह सभी कुछ बलात्कार के ही अनुकूल था। समाज में इन सव तर्कों की काफी कद्र की जाती है। लेकिन एक लड़की अगर अपनी मर्जी-मुताबिक हँसती है, चलती-फिरती है, अपनी पसंद की पोशाक पहनती है, तो इस वजह से उसे बलात्कार का शिकार क्यों होना होगा? औरत पर लादे गए, ये सब निरर्थक तर्क तो खैर हैं ही, ऊपर से साक्षी-सबूत के भी झमेले हैं। बलात्कार कोई साक्षी रखकर नहीं करता। फिर भी साक्षी की तलाश की जाती है। अगर कोई एक औरत साक्षी देती है, तो नहीं चलेगा, दो-दो औरतों की साक्षी ज़रूरी है। जहाँ सिर्फ एक मर्द हो, तो चलता है, लेकिन दो औरतें न हों, तो उसे प्रमाण नहीं माना जाएगा, क्योंकि इस देश के कानून में दो औरतें, एक मर्द के बराबर होती हैं।

स्वास्थ्य-दफ्तर में नौकरी करते हुए, उस पर निदेशक के ड्राइवर और उसके चेले-चामुंडों ने मिलकर जो भयंकर बलात्कार किया था, उसके खिलाफ़, कोई न्याय हुआ या नहीं और अगर हुआ था, तो किस किस्म का विचार हुआ था, मुझे पता नहीं। नीलकमल क्या कोई उदाहरण नहीं बन सकता? जो नीलकमल प्रेसीडेंसी जेल में उम्र कैद की सज़ा झेल रहा है उस किस्म का विचार? मैं चाहती हूँ, मेरा देश भी बलात्कार का ऐसा ही सख्त इंसाफ करे। मैं चाहती हूँ, मेरे देश के लॉन्च के अंसारों और रक्षकों को भी उम्रकैद की सज़ा दी जाए। वैसे सिर्फ पुलिस और पहरेदारों में ही, इसकी तादाद बढ़ रही है, ऐसी बात नहीं है समाज के हर तबके में इसकी संख्या बढ़ रही है। ...

मैं यौन-स्वाधीनता में विश्वास करती हूँ। अन्यान्य सभी आज़ादी की तरह, इंसान के लिए यह आज़ादी भी ज़रूरी है। ज़ोर-ज़बर्दस्ती आखिर क्यों चले? औरत चाहे भिखारिन हो या पतिता, अगर वह राजी न हो, तो उसे छूने का किसी को, क्या हक़ है? मेरी राय में उसे कोई हक नहीं है। राज्य के विचार में, बलात्कारी लोग बार-बार बच निकलते हैं। इसमें देश ही औरत के नागरिक अधिकारों पर थूकता है। इसके बाद भी अगर इस देश की औरतें, जुबान खोलकर, बलात्कार के जुर्म में उम्र-कैद के लिए आवाज़ न उठाएँ, आंदोलन न करें, तो मुझे उन निर्बोध औरतों के बारे में कहना ही होगा कि वे औरतें शायद मन ही मन बलात्कार का शिकार होना चाहती हैं।



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    अनुक्रम

  1. आपकी क्या माँ-बहन नहीं हैं?
  2. मर्द का लीला-खेल
  3. सेवक की अपूर्व सेवा
  4. मुनीर, खूकू और अन्यान्य
  5. केबिन क्रू के बारे में
  6. तीन तलाक की गुत्थी और मुसलमान की मुट्ठी
  7. उत्तराधिकार-1
  8. उत्तराधिकार-2
  9. अधिकार-अनधिकार
  10. औरत को लेकर, फिर एक नया मज़ाक़
  11. मुझे पासपोर्ट वापस कब मिलेगा, माननीय गृहमंत्री?
  12. कितनी बार घूघू, तुम खा जाओगे धान?
  13. इंतज़ार
  14. यह कैसा बंधन?
  15. औरत तुम किसकी? अपनी या उसकी?
  16. बलात्कार की सजा उम्र-कैद
  17. जुलजुल बूढ़े, मगर नीयत साफ़ नहीं
  18. औरत के भाग्य-नियंताओं की धूर्तता
  19. कुछ व्यक्तिगत, काफी कुछ समष्टिगत
  20. आलस्य त्यागो! कर्मठ बनो! लक्ष्मण-रेखा तोड़ दो
  21. फतवाबाज़ों का गिरोह
  22. विप्लवी अज़ीजुल का नया विप्लव
  23. इधर-उधर की बात
  24. यह देश गुलाम आयम का देश है
  25. धर्म रहा, तो कट्टरवाद भी रहेगा
  26. औरत का धंधा और सांप्रदायिकता
  27. सतीत्व पर पहरा
  28. मानवता से बड़ा कोई धर्म नहीं
  29. अगर सीने में बारूद है, तो धधक उठो
  30. एक सेकुलर राष्ट्र के लिए...
  31. विषाद सिंध : इंसान की विजय की माँग
  32. इंशाअल्लाह, माशाअल्लाह, सुभानअल्लाह
  33. फतवाबाज़ प्रोफेसरों ने छात्रावास शाम को बंद कर दिया
  34. फतवाबाज़ों की खुराफ़ात
  35. कंजेनिटल एनोमॅली
  36. समालोचना के आमने-सामने
  37. लज्जा और अन्यान्य
  38. अवज्ञा
  39. थोड़ा-बहुत
  40. मेरी दुखियारी वर्णमाला
  41. मनी, मिसाइल, मीडिया
  42. मैं क्या स्वेच्छा से निर्वासन में हूँ?
  43. संत्रास किसे कहते हैं? कितने प्रकार के हैं और कौन-कौन से?
  44. कश्मीर अगर क्यूबा है, तो क्रुश्चेव कौन है?
  45. सिमी मर गई, तो क्या हुआ?
  46. 3812 खून, 559 बलात्कार, 227 एसिड अटैक
  47. मिचलाहट
  48. मैंने जान-बूझकर किया है विषपान
  49. यह मैं कौन-सी दुनिया में रहती हूँ?
  50. मानवता- जलकर खाक हो गई, उड़ते हैं धर्म के निशान
  51. पश्चिम का प्रेम
  52. पूर्व का प्रेम
  53. पहले जानना-सुनना होगा, तब विवाह !
  54. और कितने कालों तक चलेगी, यह नृशंसता?
  55. जिसका खो गया सारा घर-द्वार

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